Monday, April 11, 2016

Khwaabon se ojhal aankhein

ख्वाबों से ओझल आँखें खुली, सवेरा धुँधला नज़र आया, राहों पर चलते-चलते, हमराह नज़र आया... झाँके जो कोई दिल में मेरे इक बार गौर से, बेशक उसे हर आईना गुमराह नज़र आया... हां है इश्क़, मोहब्बत, प्यार नाम जिस जुर्म के, उस जुर्म का मैं गुनेहगार लगातार नज़र आया... उसकी आँखों में नूर देखता हू हररोज़ इबादत की तरह, शायद उस नूर में मुझे मेरा खुदा नज़र आया... रिश्ते होते हैं कुछ जन्मो-जन्म के बंधन, पर इसमे तो मै ज़िंदगी की हर क़ैद से रिहा नज़र आया... तेरे होने से गुलशन है काँटों सी ज़िंदगी पर, तू ना हो तो बग़ीचो में हरदम पतझड़ नज़र आया... बाहों में लेकर तुझे छुपा लूँ इस दुनिया से, हर रात सत्यव्रत, ये ख्वाब नज़र आया... ख्वाबों से ओझल आँखें खुली, सवेरा धुँधला नज़र आया, राहों पर चलते-चलते, हमराह नज़र आया...

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